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होली और संगीतआस्थाभारतीय शास्त्रीय संगीत तथा लोक संगीत की परंपरा में होली का विशेष महत्व है। हिंदी फ़िल्मों के गीत भी होली के रंग से अछूते नहीं रहे हैं। होली के सतरंगी रंगों के साथ सात सुरों का अनोखा संगम देखने को मिलता है! रंगों से खेलते समय मन में खुशी, प्यार और उमंग छा जाते हैं और अपने आप तन मन नृत्य करने को मचल उठता है। लय और ताल के साथ पैर को रोकना मुश्किल हो जाता है। रंग अपना असर बताते हैं, सुर और ताल अपनी धुन में सब को डुबोये चले जाते हैं!
शास्त्रीय संगीत में धमार का होली से गहरा संबंध है। ध्रुपद, धमार, छोटे व बड़े ख्याल और ठुमरी में भी होली के गीतों का सौंदर्य देखते ही बनता है। कथक नृत्य के साथ होली, धमार और ठुमरी पर प्रस्तुत की जाने वाली अनेक सुंदर बंदिशें आज भी अत्यंत लोकप्रिय हैं - चलो गुंइयाँ आज खेलें होरी कन्हैया घर। इसी प्रकार संगीत के एक और अंग ध्रुपद में भी होली के सुंदर वर्णन मिलते हैं। ध्रुपद में गाये जाने वाली एक लोक के बोल देखिए-"खेलत हरी संग सकल, रंग भरी होरी सखी,
कंचन पिचकारी करण, केसर रंग बोरी आज।
भीगत तन देखत जन, अति लाजन मन ही मन,
ऐसी धूम बृंदाबन, मची है नंदलाल भवन।"धमार संगीत का एक अत्यंत प्राचीन अंग है। गायन और वादन दोनों में इसका प्रयोग होता है। यह ध्रुपद से काफी मिलता जुलता है पर एक विशेष अंतर यह है कि इसमें वसंत, होली और राधा कृष्ण के मधुर गीतों की अधिकता है। इसे चौदह मात्रा की धमार ही नाम की ताल के साथ विशेष रूप से गाया जाता है इसमें निबद्ध एक प्रसिद्ध होली के बोल हैं - आज पिया होरी खेलन आएभारतीय शास्त्रीय संगीत में कुछ राग ऐसे हैं जिनमें होली के गीत विशेष रूप से गाए जाते हैं। बसंत, बहार, हिंडोल और काफी ऐसे ही राग हैं। बसंत राग पर आधारित -"फगवा ब्रज देखन को चलो रे,
फगवे में मिलेंगे, कुँवर कां
जहाँ बात चलत बोले कागवा।
बहार राग पर आधारित "छम छम नाचत आई बहार''
और काफी में -
"आज खेलो शाम संग होरी
पिचकारी रंग भरी सोहत री।" प्रसिद्ध बंदिशें हैं।
होली पर गाने बजाने का अपने आप वातावरण बन जाता है और जन जन पर इसका रंग छाने लगता है। इस अवसर पर एक विशेष लोकगीत गाया जाता है जिसे होली कहते हैं। अलग-अलग स्थानों पर होली के विभिन्न वर्णन सुनने को मिलते है जिसमें उस स्थान का इतिहास और धार्मिक महत्व छुपा रहता है। जहाँ ब्रज धाम में राधा और कृष्ण के होली खेलने के वर्णन मिलते हैं वहीं अवध में राम और सीता के।
जैसे गुजरात में नवरात्र, महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी, पंजाब में बैसाखी, दक्षिण भारत में पोंगल, बंगाल में दुर्गा पूजा, को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है और महत्व दिया जाता है, ऐसे ही राजस्थान में होली का बहुत महत्व है और इन त्योहार में संगीत का एक अलग ही स्थान रहा है। संगीत बिना इन सब त्योहारों की कल्पना भी करना मुश्किल-सा लगता है।इन सब त्योहारों में होली एकता का प्रतीक है। राजस्थान के अजमेर शहर में "ख्वाजा मोईउद्दीन चिश्ती" की दरगाह जाने वाली होली का विशेष रंग है। ख्वाजा मोईउद्दीन ने होली को विशेष महत्व दिया है। कहते हैं वे खुद भी होली खेला करते थे। उनकी भक्ति में जो कव्वालियाँ गाई जाती हैं, उसमें भी रंगों का उल्लेख आता है -
"आज रंग है री मन रंग है,
अपने महबूब के घर रंग है री।भारतीय फ़िल्मों में भी अलग-अलग रागों पर आधारित होली के गीत प्रस्तुत किए गए हैं जो काफी लोकप्रिय हुए हैं। 'सिलसिला' के गीत "रंग बरसे भीगे चुनर वाली, रंग बरसे" और 'नवरंग' के "आया होली का त्योहार, उड़े रंगों की बौछार," को आज भी लोग भूल नहीं पाए हैं।इस तरह, रंग और संगीत चोली दामन की तरह एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। उनका असर मन पर, कैसे और कितनी हद तक होता है, यह होली के त्योहार में दिखाई देता है। मन की खुशी, प्रेम, उमंग, तरंग इन सब भावों को अभिव्यक्त करने के लिये रंग और संगीत होली के त्योहार का अनोखा माध्यम बन जाते हैं। लोग अपने मन के दुख और द्वेष भाव को मिटाकर रंगों की दुनिया में सुर और ताल के संग अपने आप को डुबो लेते हैं। चारों तरफ़ खुशी, प्यार और अपनेपन का एक अलग वातावरण बन जाता हैं। रंग मन के भावों को अभिव्यक्त करते हैं, संगीत जीवन की साधना है, और इन दोनों के समन्वय की मिसाल है होली का बेमिसाल त्योहार!aslam sonua s group laxminiya 22 march 2016
Wednesday, 23 March 2016
होली और संगीत story of holi in hindi
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Salman khan
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