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Wednesday, 23 March 2016

हिन्दी तुझे प्रणाम (कविता संग्रह) poems in hindi

हिन्दी तुझे प्रणामआचार्य भगवत दुबे का इक्कीसवाँ काव्य संग्रह है। इसमें राष्ट्रभाषा हिन्दी की पैरवी बड़े पुरजोर ढंग से गीतनवगीतगज़लमुक्तकसवैयाकुंड़लिया एवं दोहाछंद के माध्यम से की गई है। हिन्दी के प्रचारप्रसार में सहायक बनने लायक रोचकलयात्मक एवं सूक्तिपरक कुछेक नारे भी लिखे गए हैं जो कि राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति अटूट श्रद्धाभक्ति एवं निष्ठा को प्रकट करते हैं।
देखा जाए तो मूल रूप से हिन्दी का स्वभाव एक संत की तरह हैन कि दार्शनिक की तरह। दार्शनिक तो तार्किकता से ऊपर उठता हैजबकि संत लहरों की तरह फैलता है। आज हिन्दी का वैश्विक फैलाव इसी तथ्य को प्रमाणित करता है।
देश के नियतिनियंताओं ने इस सत्य को भी उपेक्षित कर रखा है कि हिन्दी का मन फकीरी मन हैशाही मन नहीं। हिन्दी का मन अपने टाट पर सबके लिए स्नेहपूर्वक जगह बना लेता है। जिंदगी से जूझने वाले साधारणजनों की भाषा हिन्दी है। बड़े अफसरोंरईसों एवं सत्ता के पिट्ठुओं की भाषा वह कतई नहीं है।
कवि इसलिए तो कहता है कि – 'राष्ट्रगीत की भाँति होहिन्दी का जयगानदंडनीय घोषित करेंहिन्दी का अपमान।हम हिन्दी भाषी अपनी भाषा के प्रति जितने उदासीन हैंशायद विश्व में कोई और नहीं होगा। संविधान निर्माताओं ने हिन्दी को कौनसा अधिकार नहीं दिया?लेकिन क्या हिन्दीभाषियों ने अपने नेताओं और नौकरशाहों से कभी पूछा कि वे हिन्दी की अवहेलना क्यों करते हैं?
भारत सरकार के हर कामकाज में पहले हिन्दी होना चाहिए। मजबूरी हो तो अंग्रेजी का इस्तेमाल किया जा सकता है,लेकिन असलियत यह है कि सरकार का सारा कामकाज मूल रूप से अंगरेजी में हो रहा है। हिन्दी में तो सिर्फ अनुवाद होता है। अगर संवैधानिक विवशता न हो तो वह भी गायब हो जाएजबकि बकौल कवि के – 'हिन्दी ने हर क्षेत्र में प्रकट किया सामर्थ्यअंगरेजी दाँ  कह रहेउसको ही असमर्थ।अकेले भारत में ७० करोड़ से ज्यादा लोग हिन्दी बोलते और समझते हैं। पूरे ब्रिटेन में जितने लोग अंगरेजी बोलते हैंउससे ज्यादा तो अकेले उत्तरप्रदेश में हिन्दी बोलते हैं।
जापानरूसजर्मनीफ्रांसचीन आदि देशों ने जितनी प्रगति कीवह अपनी भाषा में ही की है। इन देशों को विकास की पराकाष्ठा तक पहुँचने के लिए अंगरेजी भाषा की कतई जरूरत महसूस नहीं हुईतो फिर इस दिशा में हम कब सचेत होंगेजबकि 'सहजसरलसम्प्रेष्य हैयह बहुविज्ञ जुबानहिन्दी में ही कर सकेउन्नति हिन्दुस्तान।एक और उदाहरण लें– 'बिना राष्ट्रभाषा यहाँबीते वर्ष पचासभारतीय दिनमान कोलगा अमंगल खग्रास।'
बकलम डॉरामप्रसाद मिश्र के इस संग्रह में यदि पंमदनमोहन मालवीयपुरूषोत्तमदास टंडनगोविन्ददासपंबालकृष्ण शर्मा'नवीन', डॉराममनोहर लोहिया जैसे हिन्दी अनुरागियोंसृष्टाओं पर भी लेखनी चलाई गई होती तो संग्रह निःसंदेह समग्रतः पूर्ण एवं अप्रतिम कहलाने का अधिकारी हो सकता था।

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