aslam sonu laxminiya

Wednesday, 23 March 2016

होली त्योहार से जुड़ी पौराणिक (धार्मिक) मान्यता / Story of Hiranyakashyap and Prahlad in Hindi

होली त्योहार से जुड़ी पौराणिक (धार्मिक) मान्यता / Story of Hiranyakashyap and Prahlad in Hindi

पौराणिक मान्यता की नज़र से होली का पर्व, एक ऐसे धार्मिक प्रसंग के मद्दे नज़र मनाया जाता है, जहाँ अटूट श्रद्धा, पवित्र भक्ति, बुराई का अंत, अच्छाई की विजय, यह सब केंद्र बिन्दु है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल मे  हिरण्यकश्यप नाम का एक अति बलशाली राक्षस राजा था। उसे ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था कि न उसे कोई नर मार सकता है न कोई जानवर, न देवता न दैत्य, न उसे दिन में मारा जा सकता है न रात में, न घर के भीतर न बाहर, और न उसे जमीन, पानी, या हवा में मारा जा सकता है।
इस वरदान के घमंड में हिरण्यकश्यप तीनों लोकों मे खुद को सर्वशक्तिमान के रूप में स्थापित करना चाहता था और स्वयं को भगवान समझता था। अपने राज्य मे अगर किसी भी नागरिक को अपने आलावा किसी और की उपासना करते देखता या सुनता तो उसे तत्काल मृत्यु दंड दे देता था।
पर एक कहावत है ना, जो किसी से नहीं हारता अपनी औलाद से हारता है । हिरण्यकश्यपके साथ भी वही हुआ था।
अत्याचारी अतिबलशाली हिरण्यकश्यप के घर ही उसके पुत्र स्वरूप मे महान विष्णु उपासक प्रह्लाद ने जन्म लिया। प्रह्लाद एकनिष्ठ विष्णु भक्त था। उसे किसी मनुष्य, पशु, राक्षस, देव, दानव, आदि का भय नहीं लगता था।
हिरण्यकश्यप अपने पुत्र के विष्णु भक्त होने के बारे मे जानता था। सो उसे साम दाम दंड भेद हर प्रकार से विष्णु भक्ति त्याग करवाने का प्रयास करता। पर लाख कोशिशों के बाद भी प्रह्लाद अपनी विष्णु भक्ति नहीं त्यागते। अंत मे हिरण्यकश्यप अपने पुत्र को मार देने का निश्चय करता है। और प्रह्लाद को मारने के हेतु कई प्रयास  करता है-  कभी पहाड़ से नीचे फेंकवा देता है, कभी ज़हर दे देता है, तो कभी घने जंगल में छोड़ देता है.. तो कभी पानी मे डुबो देता। पर विष्णु कृपा से प्रह्लाद को कोई क्षति नहीं पहुँचती।
परेशान होकर हिरण्यकश्यप अपनी बहन होलिका की सहायता लेता है। होलिका को वरदान था कि उसे अग्नि भस्म नहीं कर सकती, इसलिए हिरण्यकश्यप होलिका को आदेश देता है कि वो प्रहलाद को अपने गोद में बैठा कर अग्नि की चिता पर बैठ जाए ताकि वरदान के प्रताप से वो खुद बच जाए और प्रह्लाद जल कर भस्म हो जाए।
होलिका ने ऐसा ही किया, पर बुराई कितनी भी आगे निकल जाये अच्छाई के पीछे ही रहती है।
होलिका भूल गयी कि उसका वरदान अकेले अग्नि में प्रवेश करने पर काम करता, और वह प्रहलाद को लेकर चिता पर बैठ जाती है। प्रहलाद लगातार “नारायण-नारायण” का जाप करते रहते हैं और विष्णु कृपा से उन्हें कोई क्षति नहीं पहुंची जबकि होलिका वहीँ जल कर भष्म हो जाती है। तभी से होलिका दहन की परम्परा है और उसके अगले दिन हर्षोल्लास के साथ होली मनाने की प्रथा है।www.aslamsonuasgroup.blogspot.com

No comments:

Post a Comment