aslam sonu laxminiya

Wednesday, 23 March 2016

श्री कृष्ण भगवान के पूतना वध से जुड़ी होली उत्सव की धार्मिक मान्यता / Lord Krishna Putna Vadh Story in Hindi

श्री कृष्ण भगवान के पूतना वध से जुड़ी होली उत्सव की धार्मिक मान्यता / Lord Krishna Putna Vadh Story in Hindi

मथुरा का अत्याचारी अधर्मी राजा कंस जब दिव्य भविष्यवाणी सुनता है कि उसका वध उसकी अपनी ही बहन देवकी का आठवा पुत्र करेगा। तब कंस देवकी के सारे पुत्रो को एक एक करके मार देते है। पर आठवे पुत्र धरतिधर श्री कृष्ण को अवतार लेने से नहीं रोक पाता है। और उसी प्रसंग से होली की मान्यता भी जुड़ी है। जब कंस श्री कृष्ण वध के लिए राक्षसी पूतना को विश युक्त दुग्धपान कराने के लिए भेजते है, तभी कृष्ण भगवान दुग्धपान करते करते राक्षसी पूतना के प्राण भी ले लिए और पूतना का शरीर भी अदृश्य कर दिया था। और इसी दिव्य प्रसंग को याद करते हुए मथुरावासियों द्वारा राक्षसी पूतना का पुतला बना कर जलाया जाने लगा। और हर साल मथुरा मे होली का त्योहार मनाया जाने लगा।
और होली पर रंग उत्सव मनाए जाने के पीछे भी यह मान्यता जुड़ी है के भगवान श्री कृष्ण अपने सांवले वर्ण के कारण हमेशा अपनी माता यशोदा से पूछते रहते थे कि ” राधा क्यूँ गोरी मे क्यूँ काला”। तब एक दिन अपने लाडले कृष्ण को माता यशोदा कहती हैं कि तुम राधा को उस रंग मे रंग दो जो तुम्हें मनभावन लगे।
अपनी माता का यह सुझाव श्री कृष्ण को अति पसंद आता है, और नटखट कृष्ण अपनी राधा को मनभावक रंग से रंगने चल देते है। और इसी तरह होली के रंग उत्सव का उदभव हुआ।

होली समानता का प्रतीक

जैसे प्रकृति किसी भी भेद भाव के बिना अपनी  पवन, अपनी वर्षा, धूप, सब लोगो मे समान बांटती है। वैसे ही होली के रंग भी बिना किसी भेदभाव के खेलने वालों को समान रूप से एक जेसा रंग देता है । अबीर- गुलाल और रंग-बिरंगे रंगो मे रंग कर सारे होली खेलने वाले एक जैसे रंग-बिरंगे बन जाते हैं। और तब ऐसा प्रतीत होता है, के सारे भेद भाव उंच-नीच मिट गए हैं। इस तरह होली सब के एक समान होने का संदेश देती है।

होली पर मिठाईयां और मनोरंजन

हर उम्र के व्यक्ति होली के उत्सव को हर्ष और उल्लास से मनाते है। इस त्योहार पर घर की स्त्रीयां बड़े लज़ीज़ व्यंजन बनाती है। जेसे के लड्डू, खीर, पूरी, वडा, गुझिया, खजूर,ठेकुआ इत्यादि । हर प्रदेश मे होली के अलग अलग गीत गाये जाते है। ढोलक मंजीरा, इत्यादि संगीत वादक यंत्र  बजा कर नाच-गान के साथ इस उत्सव का लुफ्त उठाया जाता है। बच्चे बाज़ार से खरीदी हुई पिचकारियों से एक दूसरों को रंग  कर अपना मनोरंजन करते है। सगे सम्बन्धी एक दूसरों को मिठाईया भेट करते है। बच्चे और बड़े अपने बुजुर्गो का आशीर्वाद लेते है। वसंत की शुरुआत की खूशिया इस तरह बड़े धूम धाम से मनाई जाती है। और ऐसा कहा जाता है के प्रथम पुरुष मनु का जन्म भी वसंत आने की तिथि मे हुआ था इस लिए होली का उत्सव उसका भी प्रतीक है।

प्रचलित होली

वैसे तो होली हर जगह बड़े धूम धाम से मनाई जाती है। पर व्रज, मथुरा, वृन्दावन, बरसाने की लट्ठमार होली, श्रीनाथजी, काशी, इन जगहो की होली काफी प्रख्यात मानी जाती है। भारत के कुछ प्रान्तों में होली पांच दिन तक मनाई जाती है जो होलिका के साथ शुरू होकर रंग पंचमी के दिन ख़त्म होती है।

होली का नकारात्मक पहलू:

होली एक पावन पर्व है लेकिन आधुनिक युग में कुछ लोग इस त्यौहार की गरिमा के साथ खिलवाड़ करते नज़र आ जाते हैं। इस शुभ दिन कई लोग भांग-शराब आदि का नशा करके हुडदंग मचाते हैं और बाकी लोगों के लिए परेशानी खड़ी कर देते हैं। इसके आलावा मुनाफा कमाने के लालच में बहुत से दुकानदार मिलावटी खाद्य पदार्थ बेचकर भी इस उत्सव का स्वाद बिगाड़ने से बाज नहीं आते। रंगों में भी अत्यधिक कैमिकल्स का प्रयोग होली के रंग में भंग डालने का काम करता है।
मित्रों, होली एक पवित्र धार्मिक मान्यताओ से जुड़ा हुआ खुशियो का त्योहार है। आइये हम सब मिलकर इस त्योहार की गरिमा को बनाये रखें और रंगों के इस उत्सव को धूम-धाम से मनाएं।
धन्यवाद!

No comments:

Post a Comment