| हाँ माँ याद तुम्हारी आई, कंठ रूँधा आँखें भर आई फिर स्मृति के घेरों में तुम मुझे बुलाने आई मैं अबोध बालक-सा सिसका सुधि बदरी बरसाई बालेपन की कथा कहानी पुनः स्मरण आई
त्याग तपस्या तिरस्कार सब सहन किया माँ तुमने कर्म पथिक बन कर माँ तुमने अपनी लाज निभाई तुमसे ही तो मिला है जो कुछ उसको बाँट रहा हूँ तुम उदार मन की माता थीं तुमसे जीवन की निधि पाई
नहीं सिखाया कभी किसी को दुख पहुँचाना नहीं सिखाया लोभ कि जिसका अन्त बड़ा दुखदाई स्वच्छ सरल जीवन की माँ तुमसे ही मिली है शिक्षा नहीं चाहिए जग के कंचन 'औ झूठी पृभुताई
मुझे तेरा आशीष चाहिए और नहीं कुछ माँगू सदा दुखी मन को बहला कर हर लूँ पीर पराई यदि मैं ऐसा कर पाऊँ तो जीवन सफल बनाऊँ तेरे चरणो में नत हो माँ तेरी ही महिमा गाई ASLAMSONUASGROUP.COM
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