aslam sonu laxminiya

Friday, 19 February 2016

माँ! कुछ दिन तू और न जाती, HINDI POEMS ASLAMSONUASGROUP

माँ! कुछ दिन
माँ! कुछ दिन तू और न जाती,
मैं ही नहीं बहू भी कहती,
कहते सारे पोते नाती,
माँ! कुछ दिन तू और न जाती।
रोज़ सबेरे मुझे जगाना,
बैठ पलंग पर भजन सुनाना,
राम कृष्ण के अनुपम किस्से,
तेरी दिनचर्या के हिस्से,
पूजा के तू कमल बनाती।
माँ! कुछ दिन तू और न जाती।

हरिद्वार तुझको ले जाता,
गंगा जी में स्नान कराता,
माँ केला की जोत कराता,
धीरे-धीरे पाँव दबाता,
तू जब भी थक कर सो जाती।
माँ! कुछ दिन तू और न जाती।

कमरे का वो सूना कोना,
चलना फिरना खाना सोना,
रोज़ सुबह ठाकुर नहलाना,
बच्चों का तुझको टहलाना,
जिसको तू देती थी रोटी,
गैया आकर रोज़ रंभाती।
माँ! कुछ दिन तू और न जाती।

सुबह देर तक सोता रहता,
घुटता मन में रोता रहता,
बच्चे तेरी बातें करते,
तब आँखों से आँसू झरते,
माँ अब तू क्यों न सहलाती।
माँ! कुछ दिन तू और न जाती।

अब जब से तू चली गई है,
मुरझा मन की कली गई है,
थी ममत्व की सुन्दर मूरत,
तेरी वो भोली-सी सूरत,
दृढ़ निश्चय औ' वज्र इरादे,
मन गुलाब की कोमल पाती।
माँ! कुछ दिन तू और न जाती।

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