aslam sonu laxminiya

Monday, 28 March 2016

Women's Day Special: समाज शिक्षा और महिला सशक्तिकरण by asgroup

Women's Day Special: समाज शिक्षा और महिला सशक्तिकरण‬

by aslam sonu a s group email aslamsonu26@gmail.com 
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महिला सशक्तिकरण का अर्थ मुख्य रूप से महिला को शक्तिशाली बनाने से होता है , इसके लिए आवश्यक है कि महिलाओं को पुरुषों के समान ही अधिकार प्रदान किए जाएं तथा उन्हे अपने फैसले लेने के पूर्ण अधिकार दिए जाएं और हमारे संविधान मे स्त्रियों को पुरुषों के समान ही अधिकार दिए भी गए हैं ।
फिर क्या कारण रहा होगा ऐसा जिसके चलते महिलाएं जिस सम्मान की हकदार हैं वो उनको नहीं मिला ?
वास्तविकता यह है कि हमारे समाज में होने वाले हर परिवर्तन में महिलाओं का योगदान अवश्य रहा है , चाहे वह योगदान पूर्ण हो अथवा आंशिक ।
कहा जाता है कि एक मां अपनी संतान की प्रथम शिक्षक होती हैं परंतु फिर भी पुराने समय से महिलाओं की शिक्षा को विशेष महत्व नहीं दिया जाता था , कुछ क्षेत्रों मे आज भी महिलाओं की शिक्षा को लेकर बहुत अधिक परिवर्तन नहीं हुए हैं और यह वास्तविकता मे चिंता का विषय है ।
यदि हमारे प्राचीन धर्मग्रन्थों को माना जाए तो स्वयं देवाधि देव महादेव ने माता पार्वती को अपने समान शक्तिशाली तथा अपना ही आधा अंग बताया है ,
रामायण का आधार माता सीता के आसपास ही स्थापित होता है ,
श्री गणेश की पूरक ऋद्धि तथा सिद्धि को माना गया है ।
कुछ कुबुद्धिजीवी अपने ही धर्मग्रंथों का गलत अर्थ निकालते हुए एक तर्क प्रस्तुत करते हैं कि यदि महिलाओं को पुरुषों के समान ही अधिकार प्राप्त थे तो माता लक्ष्मी सदैव भगवान विष्णु के पैरों की ओर ही क्यूं बैठती हैं तथा उनकी सेवा क्यूं करती रहती हैं ?
मित्रों ये महिलाओं की कमजोरी को नहीं बल्कि महिलाओं के सेवा भाव तथा अपने पति को ही परमेश्वर मानने की सोच को दर्शाता है , इसका अर्थ यह कभी भी नहीं कि एक महिला जो आपको अपना स्वामी मानती है उसे आप बस अपने चरणों और उपभोग मात्र ही सीमित कर दें ।
यदि ऐसा ही होता तो भक्तिकाल मे मीराबाई , अण्डाल तथा बहनाबाई जैसे नाम आप कभी ना सुन पाते , और ना ही कभी रानी लक्षमीबाई की शौर्यगाथा अपने बच्चों को सुना पाते ।
मीराबाई से लेकर इंदिरा गांधी , सरोजनी नायडू , महादेवी वर्मा , कल्पना चावला , सानिया मिर्जा , साइना नेहवाल आदि नाम महिला सशक्तिकरण के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं ।
स्वयं नेपोलियन ने कहा था "आप मुझे एक योग्य माता दे दो , मैं आपको एक योग्य राष्ट्र दे दूंगा!"
नेपोलियन का यह कथन समाज में माता (महिला) के महत्व को दर्शाता है ।
इसके अतिरिक्त क्या आप माता जीजाबाई को भूल सकते हैं जिनकी दी प्रेरणाओं ने शिवाजी को वीर शिवाजी बना दिया ?
मैं वादा करता हूं कि बचपन में पन्ना धाय की कहानी को पढ़कर एक बार जरूर आपके भी रोंगटे खड़े हुए होंगे जिन्होने राजकुमार की रक्षा के लिए अपने पुत्र का बलिदान दे दिया था ।
याद हैं क्या आपको हम सभी के लिए क्रान्ति और देशभक्ति का पर्याय वीर भगत सिंह जी की माताजी विद्यावती जिन्होने अपनी आंखों से बहते आंसुओं के लिए कहा था कि ..
"मैं इस बात पर नहीं रो रही कि मेरे बेटे को फांसी दी जा रही है , मैं तो अपनी कोख पर रो रही हूं कि इसने मातृभूमि पर बलिदान होने वाले सिर्फ एक ही बेटे को जन्म दिया।"
हर क्षेत्र मे महिलाओं का योगदान होने के पश्चात भी कई स्थानों पर महिलाएं अपने वास्तविक अधिकारों (शिक्षा , नाम , प्रसिद्धि आदि) से वंचित रही क्योंकि हमारी मानसिकता हीन एवं तुच्छ थी , समय के साथ हम खुद को बदल नहीं पाए थे या फिर बदलना ही नहीं चाहते थे , जो भी हो , वो हम ही थे जिन्होने पुरुष प्रधान समाज का निर्माण किया और महिलाओं को घर की ड्योढ़ी के भीतर ही सीमित कर दिया , महिलाओं को शिक्षा से वंचित कर दिया , समाज मे उनके अस्तित्व को बस विवाह , घरेलू काम काज , उपभोग की वस्तु बनाकर तथा बच्चों को जन्म देकर उनके पालन पोषण तक ही रखा ।
देश बहुत पहले स्वतंत्र हो गया था , संविधान भी बन गया था , हमें अधिकार भी दे दिए गए थे , परंतु इस "हम" में महिलाएं नहीं थी बल्कि सिर्फ पुरुष ही थे ,, महिलाओं ने तब स्वतंत्रता को जाना ही नहीं क्योंकि वो स्वतंत्र थी ही नहीं ,, घर की चारदीवारी ने उन्हे स्वतंत्र होने ही कब दिया था ?
कहीं ना कहीं इस सब का दुष्प्रभाव भी हमे झेलना पड़ा जिससे की हमारी शिक्षा व्यवस्था पर खास प्रभाव पड़ा।
कहा जाता है कि ..
"यदि आप एक पुरुष को शिक्षित बनाते हैं तो आप मात्र एक उसे ही शिक्षित बनाते हैं परंतु यदि आप एक महिला को शिक्षित बनाते हैं तो आप एक पूरे परिवार को शिक्षित बनाते हैं ।"
यदि एक मां ही शिक्षित नही होगी तो वह अपने बच्चों को शिक्षा का महत्व समझाकर शिक्षा की प्रेरणा कैसे देगी?

प्राचीन समय में भारतीय ऋषियों ने अथर्ववेद में जब वर्णन किया था कि ,
‘माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः’ (अर्थात भूमि मेरी माता है और हम इस धरा के पुत्र हैं ) तभी सम्पूर्ण विश्व में नारी-महिमा का उद्घोष हो गया था परंतु उसके बाद भी महिलाओं का हीनता मे जीना हमारा दुर्भाग्य ही रहा।
वर्तमान समय मे महिला पुनः अपने उस सम्मान को प्राप्त करने को दिन प्रतिदिन संघर्षरत है जो उसे सदियों पहले प्राप्त हो जाना चाहिए था ,
शिक्षा , प्रौद्योगिकी , विज्ञान , व्यापार , लेखन , राजनीति , सेना , खेलकूद आदि हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी दक्षता का प्रदर्शन कर पुरुषों से कड़ी प्रतिस्पर्धा कर रही हैं और देर से ही सही परंतु एक सशक्त समाज की नीव पड़ चुकी है और एक उज्जवल भविष्य हमारी प्रतीक्षा कर रहा है क्योंकि ,,
"महिलाएं प्रकाश की किरण बन समाज को उज्जवल करने हेतु आगे बढ़ रही हैं ,,
इन्हें रोकें नहीं बढ़ने दें !
शिक्षित महिला ही हमारे स्वच्छ और उज्जवल भविष्य का आधार हैं ,,
इसलिए इन्हें पढ़ने दें !"
धन्यवाद !
तथ्य साभार - गूगल , मित्र और चर्चाएं ।

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