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चिंतन दर्शन जीवन सर्जन रूह नज़र पर छाई अम्मा सारे घर का शोर शराबा सूनापन तनहाई अम्मा
उसने खुद़ को खोकर मुझमें एक नया आकार लिया है, धरती अंबर आग हवा जल जैसी ही सच्चाई अम्मा
सारे रिश्ते- जेठ दुपहरी गर्म हवा आतिश अंगारे झरना दरिया झील समंदर भीनी-सी पुरवाई अम्मा
घर में झीने रिश्ते मैंने लाखों बार उधड़ते देखे चुपके चुपके कर देती थी जाने कब तुरपाई अम्मा
बाबू जी गुज़रे, आपस में- सब चीज़ें तक़सीम हुई तब- मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से आई अम्मा
ASLAM SONU A S GROUP
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