| जाड़े की जब धूप सुनहरी अंगना में छा जाती है बगिया की माटी में तुलसी जब औंचक उग आती है माँ की याद दिलाती है
हो अज़ान या गूँज शंख की जब मुझसे टकराती है पाँवों तले पड़ी पुस्तक की चीख हृदय में आती है माँ की याद दिलाती है
कटे पेड़ पर भी हरियाली जब उगने को आती है कटी डाल भी जब कातिल का चूल्हा रोज़ जलाती है माँ की याद दिलाती है
अदहन रखती कोई औरत नन्हों से घिर जाती है अपनी थाली देकर जब भी उनकी भूख मिटाती है माँ की याद दिलाती है
सुख में चाहे याद न हो, पर चोट कोई जब आती है सूरज के जाते ही कोई दीपशिखा जल जाती है माँ की याद दिलाती है |
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